ज़िंदगी को यूँ हमने इक समंदर बनाके छोड़ दिया,
क़तरा-क़तरा लुटाते गये और कलंदर बनाके छोड़ दिया,
बुलंदी की राह पर थे हम भी काबिज कुछ वक़्त तलक...
हार बैठे सब-कुछ ख़ुद को सिकंदर बनाके छोड़ दिया !
Sumeet Kavyatra : A Poetry from Core of my Heart, Masoom Parinda, Adhyatmik, KavyatraSumeet, Shayri, Poems, Sher-o-shayri, Addons, Ghazal, Nazm.
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