*** नहीं पाया *** नहीं पाया दरिया दिल था मैं लेकिन क्यूँ फिर भी पिंघल नहीं पाया, हज़ारों खा के धोखे भी मैं ख़ुद को बदल नहीं पाया, मेरी ख़ामोश लहरें और पतंगा रात भर तड़पे... हवा भी चल नहीं पाई... दिया भी जल नहीं पाया ! ✍️सुमीत सिवाल...
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