असर...

 *** असर  ***


असर
असर 

शायरी का शौक हम पर कुछ इस क़दर रहा...

खोते चले गए ज़िन्दगी पर असर उम्रभर रहा !


थपेड़ों ने पीटा कभी किनारे तक घसीटा.. पर टिका रहा...

 यूँ उफनती थमती मौजों पे अपना घर रहा !


दुश्मनों से तो आख़िर मोहब्बत ही मिली हमको...

पर दोस्तों से हर वक़्त दुश्मनी का डर रहा !


कुछ तो असर है दुआओं में मेरे दोस्तों की वरना...

ऐसे ही इस शायरी का अंदाज़ नहीं निखर रहा !


जो लिखता गया सब जचता गया ग़ज़ल में क्योंकि...

" सुमीत "... जिक्र तेरा रहा और रब का शुक्र रहा !


✍️ सुमीत सिवाल...

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