सूचित हो...

 🙏 🧘‍♂️ *** सूचित हो *** 🧘‍♂️ 🙏

सूचित हो
सूचित हो 

यशस्वी सूर्य अम्बर चढ़ रहा है, तुमको सूचित हो,

विजय का रथ सुपथ पर बढ़ रहा है, तुमको सूचित हो,

अवाचित पत्र मेरे जो नहीं खोले तलक तुमने.....

समूचा विश्व उनको पढ़ रहा है, तुमको सूचित हो !


हमारा कथ्य ताना जा रहा है तुमको सूचित हो ,

हमीं से अर्थ जाना जा रहा है तुमको सूचित हो ,

सहज प्रेमिल क्षणों की मूक–भाषा के प्रसारण में ,

हमें पर्याप्त माना जा रहा है तुमको सूचित हो !


नवल होकर पुराना जा रहा है, तुमको सूचित हो,

पुनः यौवन सुहाना आ रहा है, तुमको सूचित हो,

जिसे सुन कर कभी तुमने कहा था मौन हो जाओ....

वो धुन सारा ज़माना गा रहा है, तुमको सूचित हो !


सहज अंतर में उद्गम बन रहा है, तुमको सूचित हो,

भ्रमित “मैं” अंततः “हम” बन रहा है, तुमको सूचित हो,

कभी जो क्रूर मंगल–गान सुनकर डगमगाया था,

वही स्वरभंग सरगम बन रहा है, तुमको सूचित हो !


समर जो शेष था वो जय हुआ है, तुमको सूचित हो,

समय का तेज मुझ में लय हुआ है, तुमको सूचित हो,

“सृजन है अर्थ से वंचित सदा” यह सार था जिसका...

उसी अवधारणा का क्षय हुआ है, तुमको सूचित हो !


विगत का ताप घटता जा रहा है, तुमको सूचित हो,

दिवस क्षण में सिमटता जा रहा है, तुमको सूचित हो,

तपस्वी, सिद्ध, परिजन भी नहीं जिससे छुड़ा पाए...

वही भ्रम पाश कटता जा रहा है, तुमको सूचित हो !

🙏☺️🙏

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Sumeet Kavyatra

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