फिरता है...

🚶‍♂️***  फिरता है ***🚶‍♂️


फिरता है
फिरता है 

बंज़र धरती पे भी बिखरी... हर शाक छानता फिरता है,

ये कैसा मानव है ? ख़ुद अपनी ख़ाक छानता फिरता है,

कण-कण में वो ही बसता, सब जानते पर इंसान क्यूँ फिर भी...

मिट्टी के पुतलों में रिश्ता पाक़ छानता फिरता है ! 


✍️सुमीत सिवाल...


 

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