वक़्त...

*** वक़्त ***


Darakht, waqt, taqt, kambakht
वक़्त 


कितने मासूमों की जान लोगे इस तख़्त के लिए,
 है कोई क़ीमत तुम्हारे पास इस रक्त के लिए। 

बदल लो अपने नापाक इरादे वक़्त रहते-रहते,
वरना ज्यादा वक़्त नहीं रहा तुम्हारी जमानत जप्त के लिए। 

उसका गुरूर इक दिन जरुर चकनाचूर हो जाएगा,
थोड़ी हिम्मत और लगाओ पत्थर सख्त के लिए। 

वो अजनबी होके भी ताउम्र तुम्हें रस्ता दिखाता रहा ,
कभी एक पल भी सोचा तुमने ? उस बूढ़े दरख़्त के लिए। 

कब से सजाए बैठे हैं दीयों से चौखटें अपनी,
थोड़ा वक़्त तो निकालो इस दिल कमबख़्त के लिए। 

और लम्हां-लम्हा भी कुछ समझाने की कोशिश में है 'सुमीत'... 
 पर वक़्त ही नहीं है किसी के पास इस वक़्त के लिए। 


*** सुमीत सिवाल ***

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