*** तलाशती फिरेंगी ***
तलाशती फिरेंगी |
मंजिलें खुद मुसाफिरों को तलाशती फिरेंगी,
ये कहकशाएँ सितारों को तलाशती फिरेंगी,
हम ना होंगे तो महफिलों में नंगे पाँव दर-बदर...
ये नज़्में शायरों को तलाशती फिरेंगी।
मौसम आ-जाके खूब तड़पाएँगे तुम्हें,
लाख आवाज़ दोगे... हम सुन न पाएंगे तुम्हें,
न मिलेगा बहर तो इधर-उधर भटकती...
ये नदियाँ किनारों को तलाशती फिरेंगी।
बचपन के वो दिन जो बीते थे गाँवों में,
उड़ाए जहाज खूब तैरे थे नावों में,
न लौटेंगे हम-तुम तो मुज़्तरिब सी होकर...
ये गलियां उन यारों को तलाशती फिरेंगी।
खबर तेरी खबरदार करेगी हमें अब,
तेरे दर से दरकिनार करेगी हमें अब,
मिला कोई ख्वाब इन रातों को गर ना...
ये नज़रें नज़ारों को तलाशती फिरेंगी।
बनाया था हम ने भी सपनों का इक घर,
सजाया था उस के हर कमरे को मिलकर,
यूँ सूना रहेगा ये आँगन तो इक दिन...
ये दीवारें दरारों को तलाशती फिरेंगी।
ये पल है जो इस पल तू हो चल मेरे संग,
रंग देख गुलों का और भंवरों की ये जंग,
न मिला अश्क-ए-नदामत तो हर पल बेमौसम...
ये लताएं बहारों को तलाशती फिरेंगी।
✍️सुमीत सिवाल...
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