*** कसूर ***
कसूर |
बेशक़ से बेनूर है,
ज़िन्दगी पर ग़ुरूर है,
जिए जा इसे पल-पल...
इसका यही दस्तूर है !
रख कर अब होंसले,
ले तूँ सारे फैसले,
ख़ुदा पर ही छोड़ दे...
ख़ुदा को जो मंज़ूर है !
मिल जो गया तुझे,
रख इसे संभालके,
छोड़ उसकी लालसा...
जो निगाह से तेरी दूर है !
ख़ुदा की कर इबादतें,
पा जायेगा इनायतें,
जिस तरफ भी देख ले...
उसी का ही सुरूर है !
दिल से बस तूँ नाम ले,
हाथ उसका थाम ले,
भंवर से तर ही जायेगा...
इतना तो सच जरूर है !
खो गया जो भी तेरा,
अब तो उसको भूल जा,
क़िस्मत में था वो लिखा...
"सुमीत" का क्या कसूर है ?
✍️सुमीत सिवाल...
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