*** मेघा ***
मेघा |
घोर तूफानों सी घिर आती,
कभी घटा काली बन जाती,
पल-पल में हर बार की तरहाँ...
रूप नया धर जाती मेघा !
जोहे उसकी बाट ये चातक,
कभी रूप ले लेती घातक,
बरस ना पाए तो मुरझा कर,
अंदर से भर जाती मेघा !
उसके बिन सुनसान ये धरती,
राह उसी की देखा करती,
आँखों से होकर के दिल में,
चुपके से तर जाती मेघा !
कभी सताती कभी रुलाती,
बात-बात पर बुत बन जाती,
बनकर फिर आँसू के मोती,
आखों से झर जाती मेघा !
मन में गर वो ठान ले जब-जब,
कहना खुद का मान ले तब-तब,
दुआ माँगने ख़ुदा के आगे...
नंगे पग घर जाती मेघा !
देख परिंदों को मुस्काती,
सहज़ हाथ उनको सहलाती,
तेज कड़कती तड़ित को सुनकर...
बच्चों सी डर जाती मेघा !
बहते अमृत की धार वही,
करती जग का उद्धार वही,
पावन अधरों से छूकर के हर...
पाप मेरा हर जाती मेघा !
बहते अमृत की धार वही,
करती जग का उद्धार वही,
पावन अधरों से छूकर के हर...
पाप मेरा हर जाती मेघा !
अक्सर चाहती है नाम मेरा,
चुप-चुप सहती इल्जाम मेरा,
हवा को लेकर साथ में नभ-नभ...
नाम मेरा कर जाती मेघा !
✍️सुमीत सिवाल...
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