*** चले गए ***
चले गए |
जितने भी खुद्दार लोग थे सब, आकर चले गए...
ज़िन्दगी का यही दस्तूर है... बताकर चले गए !
किसी ने नेकियाँ बोई तो किसी ने सर काटे...
सब अपने-अपने हिसाब चुकाकर चले गए !
साया जिन पर भी हुआ ग़ुरूर का, इतिहास गवाह है...
अपने-अपने तख़्त-ओ-ताज गंवा कर चले गए !
जहाँ होती थी ज़िन्दगी की सुबह-ओ-शाम,आज हम...
उसी गली में शिद्दत से गर्दन झुकाकर चले गए !
खोद कर तो देखो दफ़न इस मिटटी मे कितने क़लंदर...
होकर मिटटी-मिटटी सैंकड़ो राज दबा कर चले गए !
एक तेरे मिटने से क्या होगा "सुमीत" यहाँ तेरे जैसे...
न जाने कितने सिकंदर अपनी हस्ती मिटाकर चले गए !
✍️सुमीत सिवाल...
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