*** गुलज़ार ***
गुलज़ार |
एक बार फिर लाचार होने जा रहा हूँ...
मैं गुनाहगार होने जा रहा हूँ !
खूब संभलकर चला मैं तेरी राह पे ए ज़िन्दगी...
आज फिर एक नई ठोकर का शिकार होने जा रहा हूँ !
दफ़न रखा हर राज़ मैंने सीने में अब तक...
लो पढ़ लो आज मैं अखबार होने जा रहा हूँ !
आज नहीं तो कल मंजिल मिल ही जाएगी मुझे...
एक नई राह के लिए तैयार होने जा रहा हूँ !
तूफानों को शायद खबर ही नहीं मेरी...
राह में ना आए अब... तलवार होने जा रहा हूँ !
उलझनें बांध कर अपनी पीठ पे किसी दिन...
मैं आँधियों पे सवार होने जा रहा हूँ !
लोग अब तो बंद करें मुझे पागल समझना...
सच मानो मैं समझदार होने जा रहा हूँ !
ये ज़ज़्बात हैं मेरे इनको बस लिख देता हूँ पन्नों पे...
"सुमीत" लोग ये ना कहें गुलज़ार होने जा रहा हूँ !
✍️सुमीत सिवाल...
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