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वरक |
जहाँ पर खत्म होती थी मेरी ख्वाहिश की जिद्द कल तक,
उसी इक मोड़ तक ख़ुद के सफ़र को मोड़ रखा है,
किताब-ए-ज़िन्दगी यूँ पढ़ रही है आजकल दुनिया...
तुम्हारे नाम का इक पृष्ठ अब भी छोड़ रखा है !
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