🌞 *** राखी ***🌞
राखी |
ना मैं कंघी बनाता हूँ ना मैं चोटी बनाता हूँ...
ग़ज़ल में आप-बीती को मैं जग-बीती बनाता हूँ !
ग़ज़ल वो सिन्फ़-ए-नाज़ुक़ है जिसे अपनी रफ़ाक़त से...
वो महबूबा बना लेता है... मैं बेटी बनाता हूँ !
सज़ा कितनी बड़ी है गाँव से बाहर निकलने की...
मैं मिट्टी गूँधता था... अब डबल रोटी बनाता हूँ !
वज़ारत चंद घंटों की महल मीनार से ऊँचा...
मैं औरंगज़ेब हूँ... अपने लिए खिचड़ी बनाता हूँ !
बस इतनी इल्तिजा है तुम इसे बर्बाद मत करना...
तुम्हें इस मुल्क का मालिक....मैं जीते-जी बनाता हूँ !
मुझे इस शहर की सब लड़कियाँ आदाब करती हैं...
मैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ !
😌☺️🙏
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