*** एक पैगाम - दोस्तों के नाम ***
एक पैगाम - दोस्तों के नाम |
ज्यादा पाने की उम्मीद तो थी पर ज़रा सा मिला,
जो भी मिला दोस्त मुझे एक-एक खरा सा मिला।
कुछ नया कर चौंकाने की आदत अब भी थी उसमे पर,
दूसरों को डराने वाला आज खुद डरा सा मिला।
आखरी बार मिला था तो कहा था अगली दफा अच्छे हालात मिलेंगे,
बरसों बाद मिला तो भी जख्म हरा सा मिला।
ज़ी ली हमने ज़िन्दगी दोस्तों संग हँसते-हँसते बेशक ,
मिला जो भी ख़ुशी का पल भीतर से भरा सा मिला।
ये बदनसीबी ही तो है 'सुमीत' जो हमारी ज़िन्दगी में हमें,
एक-एक जख्म भी मिला तो बेचारा मरा सा मिला।
✍️ सुमीत सिवाल...
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